“उनका प्रश्न” दूसरे स्टेशन पर समय के साथ पहुँचने का वादा निभाना था न सो ट्रेन ने सीटी दी और धीरे - धीरे अपने वृत्ताकार पाँवों को लोहे की पटरियों पर गतिशील किया । “वो” ट्रेन के भीतर और मैं बाहर । वो लगातार मेरी आँखों में आँखें गढ़ाए थीं ,जैसे छूटना नहीं चाहती थीं मुझसे । मैं उनसे हर बार दृष्टि बचाने का प्रयत्न करती परंतु मेरी आँखों में धँसी उनकी दृष्टि मुझे हर बार असफल कर देती । जैसे पटरियों पर ट्रेन के वृत्ताकार पाँवों की गति और मेरी आँखों में उनकी दृष्टि की गढ़न का कोई गहरा