खामोश मोहब्बत

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सादत खान एक देहाती इंसान थे। अपने उसूलों के पक्के, जो बात उनकी जबान से निकल जाती वो पत्थर की लकीर हो जाती। 3 साल पहले गांव में अपनी जमीन जायदाद बेचकर यहां शहर में आ बसे लेकिन रोब आज भी वैसा ही बरकरार था बिल्कुल जमीदारों जैसा। सब उनसे बहुत डरते थे यहां तक कि उनकी बीवी और दोनों बच्चे भी।रेशमा बहुत हंसमुख और चंचल थी मां-बाप की लाडली और भैया की दुलारी। सादत खान बेटी से बहुत प्यार करते थे लेकिन रेशमा उनके रोब और उसूल को देखकर डर जाया करती थी। इंटर के बाद उसने बड़ी मुश्किलों