पले इंसानियत जिसमें मैं वो दालान हो जाऊं

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१- "पले इंसानियत जिसमें मैं वो दालान हो जाऊं" तमन्ना है तेरे सजदे में मैं,कुर्बान हो जाऊं, चले जो पीढ़ियों तक,वो बना दीवान हो जाऊं, ये क्या हिन्दू, ये क्या मुस्लिम,हैं सब बेकार की बातें, पले इंसानियत जिसमें,मैं वो दालान हो जॉऊँ।। फिक्र किसको है रिश्तों की,सब अपने आप में उलझे, है कैसा स्वार्थ का जाला,सुलझकर भी जो ना सुलझे, न मुझको दीद की चाहत,न जन्नत की तमन्ना है, मैं था इंसान, रहूँ इंसान,और इंसान हो जाऊं।। मेरी खुशियों की चादर भी,तू उनको सौंप दी ईश्वर,