मेरे अनकहे जज्बात। - अकेला पथिक

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यह वसुधा न तो कभी किसी की थी न ही यह किसी की है ।सब तो हैं बस एक पथिक जिनको अपने हिस्से का जीना है ।जब तक तन में सांस चलता है इस जीवन का प्रमाण शेेष रहता है ।तब तक तो सब अपने होते हैंं फिर तो बस यादें ही रहती है ।न कभी किसी की भरी क्षुधा न कोई कभी यहाँ तृप्त हुआ । कविता की अपनी एक मंजिल होती है.लेकिन यहाँ कुछ समस्याएँ है प्रकाशित कविताओं में..हम जिस तरह से लिखते है इस साइट के एडिटर उस रूप में भी प्रकाशित करने में असमर्थ हैं और लेखकों को पुनः एडिट करने का मौका भी नही मिलता.इस कारण अक्सर कविता