इन्कलाब

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(१) अक्सर वो जब भी जोर से कहता है,ये तो तय है कि वो झूठ कहता है।खुद पे भरोसा जब ना हो यकीनन, औरों को अक्सर दबाकर वो कहता है।कहीं पर जाए उसपे जमाना न भारी,सच को हमेश हीं कमकर के कहता है।शमशानों का शहर है देख चलता गया, मुर्दों को जिंदा दोपहर वो कहता है।माना जमाने की मांग थी बदलता गया,क्या क्या बदलेगा क्या बता क्या कहता है?रूह की कीमत भी तय कर दी बाजार में,जमीर तो बचा रख "अमिताभ" ये कहता है। (२) खुद की नजरों में तो सच्चा था, सादा था,और दुनिया हँसती रही सीधा था,आधा था।कहने करने में ये कुछ तो