हवाओं से आगे - 1

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“जाना है... जाने दो हमें... छोरो, न... चल परे हट लरके ! ए दरोगा बाबू सुनत रहे हो !” “क्या चूँ-चपड़ लगा रखी है तुम लोगों ने ?” दारोगा ज़रा नाराज़ लहज़े में बोला या ये भी हो सकता है कि खाक़ी वर्दी ने उसकी आवाज़ को जबरन कर्कश बना दिया हो । बिना कलफ़ लगी आवाज़ का हवलदार तो पप्पू ही लगता है सो आवाज़ में थोड़ा कड़कपना लाना पड़ता है ठीक वैसे ही जैसे उनकी टोपी में एक सीधा तुर्रा खड़ा रहता है ।