उजड़ता आशियाना - अनकही दास्तान - 5

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वह एक थकी हुई सी शाम थी,हर तरफ खामोशी फैली हुई थी।लग रहा था जैसे कोई तूफान गुजरा था।जिसके द्वारा किये गये बर्बादी पर मातम मनाया जा रहा हो।कई सालों से मैं लगभग रोज इन रास्तों से शाम को गुजरा करता था।लेकिन मुझे याद नही इससे पहले कभी इतनी सन्नाटा फैली रही हो।कुछ चाय के दुकान,कुछ किराना के और एक दो नाश्ते की दुकान थी।जो हमेशा शाम को गुलजार रहती थी। कभी कभी तो ऐसा महसूस होता जैसे पूरे देश की राजनीतिक , सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों के जानकार इस चौराहे पर ही शाम को जमा हो जाते हैं।सारी दुनियाँ