मज़ार का दीया

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ओमकार को अंदाज़ा हो गया था कि दिव्या ने कहीं कुछ रुपए छुपाए ज़रूर हैं वरना शेफाली को डॉक्टर के पास कैसे ले गई। डॉक्टर ने कुछ न कुछ फीस तो ज़रूर ली होगी। ओमकार ने पहले तो नज़रों से घर का मुआयना करना शुरू किया। उसकी तलाशी लेती नज़रों को देख दिव्या का दिल धक-धक करने लगा। कमरों में तो ऐसा कुछ है नहीं, अलमारियाँ खुली पड़ी हैं, न फर्नीचर ज़्यादा हैं न कोई छिपे हुए कोने हैं, जिसमें कुछ छिपाया जा सके। वो अपना सारा समय रसोई में बिताती है, होगा तो ज़रूर रसोई में ही होगा, वहीं