मन कस्तूरी रे - 7

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बहुत मुश्किल थे वे दिन भी। इतने संघर्षमय जीवन में कहीं कोई अपना नहीं। तब बहुत अकेली थी दोनों माँ बेटी और उनका दिल्ली जैसे महानगर में बस जाना भी इतना आसान कहाँ था। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की परिकल्पना पुरुष के साथ के बगैर बेमानी है। एक स्त्री सामाजिक ढांचे में तभी फिट बैठती है जब उसके पिता, पति, भाई या पुत्र के रूप में एक पुरुष उसके जीवन में मौजूद रहे। पर वृंदा के साथ ले देकर एक बेटी ही थी।