जड़ से कटा

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रोजाना का यही क्रम था, पार्क के कोने वाली बैंच और उस पर एक लगभग सत्तर साल का वो बुजुर्ग । घण्टो वो उसी बैंच पर बैठा रहता था एकदम गुमसुम, ना किसी से कोई बातचीत, ना ही किसी से कोई मेलजोल । उसकी उम्र के कई लोग उसी पार्क में आते थे जो अपनी अपनी टोली में प्रायः दुनियाँ जहान की बरतें करतें थे । आपस में कभी उलझते तो कभी सहमत होते या असहमत होते । कभी सरकार की मोद्रिक नीति, कभी विदेष नीति पर चर्चा करते तो कभी राजनीति पर । कई बार तो