गलती किसकी?

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उफ्‌ इतनी गर्मी में ट्रेन खड़ी कर दी। आदमी, आदमी की तरह नहीं भेड़-बकरी की तरह ठूँसा पड़ा है, एकदम दम साधे कि अपना-अपना स्टेशन आए और मुक्ति मिले, फिर शाम की, शाम को देखी जाएगी। सुबह-सुबह ही इतना पसीना-पसीना हो लेंगे तो दिनभर क्या काम करेंगे? उफ्‌ उफ्‌! इस पर और भी उफ्‌ है लोगों के पसीने की बदबू और मोजों की गंध। सच में उफ्‌, उफ्‌, उफ्‌। आख़िर ये ट्रेन चला क्यों नहीं रहे। दो फास्ट ट्रेनों को पासिंग दे दी। अब तो चलनी चाहिए। ये स्लो ट्रेन तो है ही, मगर ये ट्रेन भी स्लो है। काश