यश का शिकंजा -व्यंग्य उपन्यास

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यश का शिकंजा यशवन्त कोठारी सम्पूर्ण कालोनी में नीरवता, रात्रि का द्वितीय प्रहर । राजधानी की पॉश कॉलोनी के इस बंगले में से आती आवाजें चारों ओर छायी नीरवता को भंग कर रही थीं। कभी-कभी दूर कहीं पर किसी कुत्ते के भौंकने से इस शान्ति को आघात पहुंच रहा था। एक बड़े कमरे में पांच व्यक्ति थे। केन्द्रीय सरकार के वरिप्ठ मंत्री श्री रानाडे, उनके अपने पत्र के सम्पादक-मित्र आयंगार, रानाडे के विश्वासपात्र सचिव एस. सिंग और उद्योगपति सेठ रामलाल । सेठ रामलाल अपनी बढ़ती तोंद और चढ़ती उम्र को सम्भालने के