माँ...

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आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ,कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है?धरती पे माँ कहलाती है। स्वर्गलोक में प्रेम की काया,ममता, करुणा की वो छाया,ईश्वर की प्रतिमूर्ति माया,देह रूप को पाती है,धरती पे माँ कहलाती है। ब्रह्मा के हाथों से सज कर,भोले जैसे विष को हर कर,श्रीहरि की वो कोमल करुणा, गर्भ अवतरित आती है,धरती पे माँ कहलाती है। दिव्य सलोनी उसकी मूर्ति ,सुन्दरता में ना कोई त्रुटि,मनोहारी, मनोभावन करुणा,सबके मन को भाती है,धरती पे माँ कहलाती है। मम्मी के आँखों का तारा, पापा के दिल का उजियारा,जाने कितने ख्वाब सजाकर, ससुराल में जाती है,धरती पे माँ कहलाती है।