बचपन से लेकर आज तक आफिया ने बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी थीं। क्या पढ़ाई का क्षेत्र, क्या मज़हब या फिर समाज सेवा का क्षेत्र। आफिया ने हर तरफ अपना लोहा मनवाया था। सबको पता था कि आफिया एक बहुत ही बुद्धिमान शख़्सियत है। मगर इस सबके बावजूद आज वह इकतीस वर्ष की उम्र में अकेली रह गई थी। गुमनामी की ज़िन्दगी उसके सामने खड़ी थी। उस पर तलाकशुदा का धब्बा लग चुका था जिसको पाकिस्तान समाज में कोई पूछता नहीं। तलाक के बाद कई सप्ताह तक वह बड़े ही मानसिक तनाव में गुज़री। फिर धीरे-धीरे वह संभलने लगी। एक सुबह वह पंछियों को दाना डाल रही थी कि उसकी माँ ने दूर से आवाज़ लगाई, “आफिया, तेरा फोन है।”