काश आप कमीने होते ! - 8

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और इधर शहर के पत्रकारों रमेंद्र जी, दयाल जी, पी चौबे आदि की सारी रामकहानी सुमन जी से सुनकर - जानकर तो असहाय से हो गए सैयद जी के रगों मे ज्वार आ गया था उस दिन। लगता था कि उनका बस चले तो अभी उन छिछोरों को गोली मार दें। गोली उनके जहन में यूं ही नहीं कौंधती है। उन्हें याद है कि जवानी के दिनों में लघु पत्रिका ‘वाम’में छपी आलोकधन्वा की कविता ‘गोली दागो पोस्टर‘ को प्रदीप मुखर्जी के साथ मिलकर झरिया की दीवारों पर किश्तों में लिखा था, यहां-वहां। प्रसाद जी, सुमन जी, सिन्हा जी को उन्होंने इस कामरेड प्रदीप की ट्रेजेडी सुनाई थी कि कैसे 20-22 साल का वह युवा दास कैपीटल, घोषणापत्र, एंटी ड्यूहरिंग... आदि को छान कर पी गया था। कैसे अभी शहर में उपन्यासकार बने फिरनेवाले रिटायर्ड प्रशानिक अधिकारी ने उसके घर में पहुंच बना ली थी।