::- जगदीश अब भी सिगार का धुआं निकालते हुए खिड़की के शीशो पर टकटकी लगाए मुम्बई शहर को देखे जा रहा था ,उसके पीछे प्रोफेसर प्राण भी जगदीश के कुछ कहने का ईन्तजार करने लगा तभी जगदीश तेजी से घूमते हुए कमरे के बाहर निकते समय प्रोफेसर को हाथ से इशारा करते हुए जगदीश अपने हाथ से सिगार को टेबल पर रखे पॉट में बुझाते हुए कहता है ।जगदीश ::- प्रोफेसर आप जानते है जो मुझे अच्छा मुनाफा दे वही काम मे करता नही करवाकर ही रहता हूं.... ,।.. बस आप सब तैयारी करो ...और मुझे 15 दिनों का