सिन्हा जी – ‘बाजार में अपने स्पेस को लोकेट किए बिना आप कहीं नहीं रह सकते। अखबार अपने ढंग से पत्रकार के कौशल को खरीदता है और पत्रकार अपने कौशल से उस अवसर को खरीदता है। दोनों समझते हैं कि हमने उसे उल्लू बना दिया। हां, पूरी की पूरी खेप इसी दुनिया में रहती है। एक दूसरे को उल्लू ही तो बनाते रहते हैं। खरीद-बिक्री के इस रिश्ते में खुद को रखे बगैर कोई एक कदम नहीं चल सकता।‘