विकास तो हुआ है

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गर्मियों के दिन थे और हर साल की तुलना में इस साल तापमान थोड़ा ज्यादा ही था.मानसून के आने का समय हो चुका था मगर बादलों का कही नामो निशान न था .चिलचिलाती धूप ने इंसान ही नहीं बल्कि पेड़ पौधों को भी परेशान कर रखा था .मौसम के इस बेरहम मिजाज से बेपरवाह नेता जी अपने सरकारी आवास के वातानुकूलित कमरे में बैठे चिंताग्रस्त नजर आ रहे थे .दरअसल चुनावो की घोषणा हो चुकी थी और सत्ता कायम रखने के लिए जनता का वोट रूपी आशीर्वाद जरुरी था .उसी जनता का जिन्हे सब्ज़बाग दिखाकर उन्होंने चुनाव जीता था