लेखनी

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1.वो आँख हीं क्या कि जिसमे ना हो कोई ख्वाब ,वो लेखन हीं क्या कि जिसमे ना हो कोई आग। 2.मेहनत के सारे फुल ऐसे हीं नही फल गए,गिरे तो हम भी थे मगर गिरकर संभल गए। 3.जिस प्यार और जंग में सब जायज है,वो ना मोहब्बत जायज है, न जंग जायज है। 4.तरक्की के पैमाने पे देश यूँ चढ़ता रहा.इंसानियत गिरती रही इन्सान बढ़ता रहा। 5.अखबार में आए ये तय नहीं है,हादसा तो है मगर समय नहीं है। 6.जा तुझे माफ किया,क्या हुआ जो सितम ढाती है,एक तू हीं तो है,जो अंत तक निभाती है। 7.कल्प नद पर मेरे