( तेलीतोड री नायहठ)गायों के रम्भाने की आवाज,और पक्षीयो की चहचहाहट के बिच, भानु का मारवाड़ के रेतिले धोरों के बिच में अदृश्य हो जाना,,और हमारे दिन भर के इंतजार के बाद बाबोसा के हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए घर तरफ चलते कदम,, बाबोसा आवे हैं,, इतना सुनते ही हम सब उनके सामने खेत की बाड़ तक चले जाते थे, बाबोसा आया बैर लाया,की रट लगाए हुए, मानों धोरो के उस पार भी आवाज जाती थी,हम अपने अपने हिस्से के बैर लेकर बाबोसा से पहले ही उनकी (कोटड़ी) “राजस्थान में बड़े बुजुर्गो के बेठने का स्थान” में पहुंच जाते थे