वो अजनबी

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आज फिर आफ़िस से घर जाने में देरी हो गई, ये कॉलसेन्टर की जोब भी न.पर न चाहते हुए भी उस लैम्पपोस्ट पे जाते जाते नज़र चली ही गई।आज भी वो वही खड़ा एकटक सामने देख कर मुश्कुरा रहा था ,बस रोज़ की तरह चुपचाप।मैं रोज़ की तरह नज़र भर देख के फिर आगे चल पड़ी।ये सिलसिला लगभग तीन महीनों से चल रहा था।आज से तीन महीने पहले में ऑफिस से निकल ही रही थी कि सड़क पे भीड़ लगी हुई थी , एक लड़का ज़मीन पे गिरा कराह रहा था , उसकी बाइक स्लिप होने कारण उसके पैरों में