बिछोह

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बिछोहदूर-दूर तक हरियाली फैली थी। मंद-मंद हवा चल रही थी। इस हल्की हवा में पीपल के पत्ते एकदम मचल-मचल के हरहरा रहे थे जबकि सामने खड़ा आम कितना शांत गंभीर था, बस एक बार अपनी किसी डाल को आगे कर देता था और फिर वो डाल ऊँघती सी वापस अपनी जगह चली आती थी जबकि उस डाल पर लगे पत्ते हिलते तक न थे, बस अपनी-अपनी जगह सोए रहते थे। खेतों के किनारे लगे ये पेड़-जंगल-झाड़ मवेशियों के चरने के कितने काम आते थे। राम दयाल की गायें भी चर रही थीं, कभी ज़मीन से जड़ सहित घास उखाड़कर चबातीं तो