भगवान राम पर यह कैसी सियासत ?

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जिस देश ने सभी को सहर्ष स्वीकारा चाहे वह शक हो या हूण हो, चाहे केरल में कोई व्यापारी जो व्यापार करने के दृष्टिकोण से भारत आया हो उसका धर्म इस्लाम ही क्यों ना हो उसकी पूजा पद्धति अलग ही क्यों न हो, उसके बाद ईसा मसीह के अनुयाई ही क्यों ना हो किसी से कोई भेद नहीं किया आज वही इस देश के असली नायक को नायक नहीं मान पा रहे। संत कबीर दास जो खुद एक मुस्लिम होते हुए एक दोहा लिखा था कबीर निरभै राम जपु, जब लगि दीवै बाति। तेल धटै बाती बुझै, (तब) सोवैगा दिन