प्रेम, रिश्ता, दोस्त, भावनाएं

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कभी कचौड़ी गली गुजरता, तो कहती रंगबाज है। अगर तुम्हारे काँधों पे सिर रखता पूछती क्या? राज है।। मेरे सीनें पर जो घूमें, अँगुली सी सहचर थी तुम। गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(२) रोटी के पर्थन हाथों में, लगा खोलती दरवाजा। दाँत दिखा कर कह देती थी, चल जल्दी अंदर आजा।। चाक चढ़ी कोई मूर्तित थी, या मिट्टी आखर थी तुम। गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(३) खाली क़मरा खाली बोतल, पर नशा तुम्हारा सिर पर। गांजा, अफ़ीम फीका था पर, झूम रहा था गिर-गिर कर।। ज़ाम काँच से छलक रहा या बहती लब़ निर्झर थी तुम। गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(४)