फिर वही खौफ

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प्रस्तावना रात अमावस की थी। चांद आसमान से नदारद था। वातावरण में नीरवता और अंधेरे का आधिपत्य था। पूस का महीना होने के कारण हवाएं सर्द थीं, जिनका वेग उग्र तो नहीं था, किन्तु उग्रता की सीमा से अधिक परे भी नहीं था। पश्चिम दिशा में दृष्टि के आखिरी छोर पर गगन रक्तिम नजर आ रहा था। आसमान छूती आग की भयानक लपटें लोमहर्षक अग्निकाण्ड की ओर संकेत कर रही थीं। आभास होता था मानो किसी बड़ी बस्ती को निर्ममता से आग के हवाले कर दिया गया हो। उन बालकों की संख्या दो थी, जिनमें से एक आगे-आगे मशाल