सुखविंदर

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सुखविन्दरप्रतापसिंह एक वीर, ईमानदार योद्धा, बिलकुल उनके जैसा ही उनका पौत्र "सुखविन्दर", मानो अपने दद्दू की कार्बन कॉपी। देशभक्ति जैसे उसे दादाजी से विरासत में मिली हो। बचपन में दादी से सुने अपने दद्दू की बहादुरी के किस्सो से प्रभावित सुखविन्दर अपने दद्दू की तरह आर्मी में भर्ती होकर देश के लिए कुर्बान होना चाहता है और जब तक आर्मी में भर्ती ना हो तब तक देश सेवा में समर्पित होने का प्रण लेता है। दादी को दद्दू से कोई शिकायत नहीं रही, हा अफ़सोस जरूर था की वे उनके साथ नहीं रहे पर, बचपन की गरीबी और चंद लोगो