लो लाँघ दी मैंने मेरी मर्यादा ,क्या सजा मुकम्मल है (आईपीएस धारा 497)

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मुझे माफ़ करदो प्रिया, गलती हो गयी मुझसे, ग़लती नही गुनाह हो गया,तुमम मुझे जो सजा दोगी वो मुझे मंजूर होगी, पर तुम घर छोड़ कर मत जाओ, हमारे बच्चे उनसे ये हक़ मत छीनो, मैं जानता हूँ तुम मुझे क़भी माफ नहीं कर पाऊँगी,पता नही मुझे क्या हो गया था, मैं बहक गया था प्रिया।हाथों में सूटकेस लिए प्रिया तैयार थी घर की दहलीज़ लांघने के लिए, क्योंकि आज सारी हदें पार हो गयी थी, आज विश्वास टूटा था जिसकी चुभन उन कांच के टूटे टुकड़ो की तरह दिल से लहू बहा रही थी, कैसे माफ करदू तुम्हे मैं राज