‘फांस’ - AN EMBARRASSMENT अब्बाजान की दिल से ये आरजू थी कि ख़ुदा का बुलावा आने से पहले एक बार वे अपने पुरखों की सरजमीं हिन्दुस्तान पर सिर टिकाकर वहां की मिट्टी अपने माथे पर लगा सके। मगर ठीक इसके उलट मैं उस गाँव का नाम भी अपनी जुबाँ पर नही लाना चाहता था जहाँ 'पार्टिशन' के ग़दर में मुझे अपनी अजीज अम्मीजान और छोटे भाई आमिर को खोना पड़ा था। जहां एक तरफ अब्बाजान की ख्वाहिश, उम्र के आखिरी मुक़ाम पर आकर बेसब्री में बदलती जा रही थी, वही मैं 'इंडो-पाक' राजनिति के बीच एक अहम किरदार