अनिरुद्ध एक प्रेम पत्र लिख रहा था। रात के ग्यारह बजे थे। उसने आधा पन्ना लिखा था। फिर उसकी आँख लग गयी। दो घंटे बाद नींद खुली तो देखा कि पत्र पूरा लिखा हुआ उसके सामने था। वह आश्चर्य में डूब गया। एक अदृश्य शक्ति उसका हाथ चला रही थी। उसे ख्याल आया कि उसके समय कैसा प्यार होता था,धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता। इतना धीरे-धीरे कि बुढ़ापे तक एक-दूसरे तक आवाज न पहुंचे।यदि किसी ने कह भी दिया तो दूसरा अनसुना करने के अंदाज में हो जाता था।प्यार अनार के दानों की तरह हृदय में पक कर लाल हो जाता था।वह सीढ़ियां चढ़ा।