(1) समय की सलवटें ----------------- समय की सलवटों को सहेजता उलझनों की झुरमुटों से झाँकता एक चेहरा निहारता है दुलारता है अपने अतीत को जिसने मजबूती दी है उसके असतित्व को। अब मालूम है कानून की कलाबाज़ियाँ जो रोज रोज उघारता जाँचता परखता है जनेन्द्रियाँ। उसकी सोच पलट गयी है - उसके पास है समाधान अब वह नहीं है नादान क्यों हो परेशान हारी हुई बाजी नहीं है वो अकेले चलने को है तैयार क्योंकि साथ है आत्मबल का हथियार। न्याय तो उसी दिन मिल गया जिस दिन धरती पर पांव दिया। धीरे धीरे एहसास