खुले आकाश के नीचे धड़कती जिन्दगी -----------------------गाँवों या शहरों के बाहर किसी खाली बंजर सूने मैदान,बाग़ीचे या फिर रेलवे स्टेशन के छोर पर मालगुदाम के आसपास तनी तम्बुओं में मैले कुचैले, औरत -मर्द ,बच्चे ,जवान व बूढ़ों पर एकाध बार नजर जरूर पड़ी होगी।परन्तु गहराई से उसकी असल जिन्दगी में झाँकने का मौका नहीं मिला होगा।तो ले चलता हूँ उन तम्बुओं ,की वस्ती में जहां जिन्दगी धड़कती है।सहरसा की हृदयस्थली में अवस्थित केन्द्रीय विद्यालय के पश्चिम खाली जमीन में 24-25 तम्बुओं का टोला दस दिनों से बसा है।वहाँ