कहानी - ज़रूरतें

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“अब फैसला आपको करना है। मेरी बात मानेंगे तो दोनों की ज़रूरतें पूरी हो जाएँगी, वरना...” कहकर स्मृति चली गयी। विवेक अभी तक मुँह नीचे किये बैठा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? इसमें कोई शक नहीं कि स्मृति की बात मानने से उसकी कई ज़रूरतें पूरी हो जाएँगी लेकिन स्मृति की ज़रूरत को पूरा करना, ‘नहीं, नहीं यह नहीं हो सकता’ सोचकर वह स्मृति की केबिन से बाहर निकल आया और अपनी मेज पर बैठकर फाइलें देखने लगा। विवेक पिछले छह साल से इस कम्पनी में नौकरी कर रहा था। इस नौकरी