कहानी - रांग नम्बर

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“हैलो...हैलो...अंकित बेटा...हम पहुँचने वाले हैं...ट्रेन आउटर पर खड़ी है।” “अच्छा पापा, मैं भी निकलता हूँ ऑफिस से, बस दस मिनट में स्टेशन पहुँच जाऊँगा। आप वेटिंग रूम में बैठ जाइएगा” कहकर अंकित ने फोन काट दिया। उधर ट्रेन में बैठे राजेन्द्र जी और उनकी पत्नी उर्मिला ने भी बड़े उत्साह से अपना बैग-अटैची सँभाल ली क्योंकि दिल्ली का स्टेशन आने वाला ही था। गाड़ी भी रेंगने लगी थी। उर्मिला ने बहुत गद्गद् होते हुए कहा, “पता ही नहीं चला कि पाँच साल कैसे बीत गये? लड्डू भी तो अब बोलने लगा है।” राजेन्द्र जी भी मुस्कुराकर बोले,