कैम्प के वो बीस दिन

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बात उन दिनों की है जब हम झाखण्ड के बोकारो स्टील सिटी  में रहते थे।पापा एच. एस. सी.एल कंपनी में ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे।अच्छा खासा सरकारी मकान मिला हुआ था। उन दिनों लड़कियों की सुरक्षा को ले कर,माता पिता इतने भयभीत नहीं हुआ करते थे।तब बच्चों का मनोरंजन मैदान, कॉमिक्स,चम्पक,नंदन,और बालपाकेट बुक्स  हुआ करता था। बच्चों से मतलब लड़के लड़कियों दोनों से है।तब लड़कियाँ भी उसी तरह निडर हो कहीं भी,खेलती थीं।दोपहर को कॉमिक्स,शाम को मैदान।रात में होमवर्क किया।इससे ज्यादा पढ़ाई की रिवाज मेरे घर में,मेरे लिये तो नहीं थी।घर मे सबसे छोटी होने की वजह से,लाड़ली जो