परी और जादुई फूल

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परी और जादुई फूल नैनीताल की ठंडी सड़क पर धीरे-धीरे चल रहा हूँ।सड़क के किनारे बर्फ अभी भी जमी है। इस सड़क पर बहुत बार अकेले और कुछ बार साथियों के साथ आना-जाना हुआ था।इस पर बोलता हूँ ,"वो भी क्या दिन थे?" रात का समय है। लगभग ग्यारह बजे हैं। यह कहानी वैसी नहीं है जैसे बड़े भाई साहब रूसी लेखक टाँलस्टाय की एक कहानी बचपन में सुनाते थे। सौतेली लड़की और उसकी सौतेली माँ की।कैसे 12 महिने एक-एक कर बदल जाते हैं उस लड़की की सहायता के लिये।अब हल्की सी उस कहानी की याद है।उस सफेद रात में