मॉस्को से तुम्हें मैं एक बड़ी चिट्ठी में रूस के बारे में अपनी धारणा लिख चुका हूँ। वह चिट्ठी अगर तुम्हें मिल गई होगी, तो रूस के बारे में कुछ बातें तुम्हें मालूम हो गई होंगी। यहाँ किसानों की सर्वांगीण उन्नति के लिए जितना काम किया जा रहा है, उसी का थोड़ा-सा वर्णन लिखा था। हमारे देश में जिस श्रेणी के लोग मूक और मूढ़ हैं, जीवन के संपूर्ण सुयोगों से वंचित हो कर जिनका मन भीतर और बाहर की दीनता से बैठ गया है, यहाँ उसी श्रेणी के लोगों से जब मेरा परिचय हुआ, तब मैं समझ गया कि समाज के अनादर से मनुष्य की चित्त-संपदा कहाँ तक लुप्त हो सकती है -- कैसा असीम उसका अपव्यय है, कैसा निष्ठुर उसका अविचार है।