गोरा - 17

  • 7.2k
  • 2
  • 2k

हरिमोहिनी ने पूछा, 'राधारानी, तुमने कल रात को कुछ खाया क्यों नहीं?' विस्मित होकर सुचरिता ने कहा, 'क्यों, खाया तो था।' हरिमोहिनी ने रात से ज्यों का त्यों ढँका रखा खाना दिखाते हुए कहा, 'कहाँ खाया? सब तो पड़ा हुआ है!' तब सुचरिता ने जाना कि रात खाना खाने का उसे ध्‍यान ही नहीं रहा। रूखे स्वर में हरिमोहिनी ने कहा, 'यह सब तो अच्छी बात नहीं है। मैं जहाँ तक तुम्हारे परेशबाबू को जानती हूँ, उससे तो मुझे नहीं लगता कि उन्हें इतना आगे बढ़ना पसंद होगा- उन्हें तो देखकर ही मन को शांति मिलती है। आजकल का तुम्हारा रवैय्या उन्हें पूरा मालूम होगा तो वह क्या कहेंगे भला?'