गोरा - 14

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परेशबाबू ने कहा, 'विनय, ललिता को एक मुसीबत से उबारने के लिए तुम कोई दुस्साहस पूर्ण काम कर बैठो, ऐसा मैं नहीं चाहता। समाज की आलोचना का अधिक मूल्य नहीं है, जिसे लेकर आज इतनी हलचल है, दो दिन बाद वह किसी को याद भी न रहेगा।' विनय ललिता के प्रति कर्तव्य निबाहने के लिए ही कमर कसकर आया था, इस विषय में स्वयं उसे ज़रा भी संदेह नहीं था। वह जानता था कि ऐसे विवाह से समाज में मुश्किल होगी, और इससे भी अधिक गोरा बहुत ही नाराज़ होगा, लेकिन केवल कर्तव्य-बुध्दि के सहारे इन सब अप्रिय कल्पनाओं को उसने मन से निकाल दिया था। ऐसे मौके पर परेशबाबू ने जब सहसा उस कर्तव्य-बुध्दि को एक बारगी बरखास्त कर देना चाहा तब विनय एकाएक उसे छोड़ न सका।