हुश्शू - 4

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हुश्‍शू का वार हवेली में टिके पाजी पजोड़े, बिकी ईंटें, हुए कड़ियों के कोड़े! लाला जोती परशाद को बीच का रास्‍ता पकड़ने से दिली नफरत थी। या कूंड़ी के इस पार या उस पार! अगर पीने पर आए तो दिन-रात गैन, हर घड़ी चूर, हर दम धुत्‍त, सिवा शराब के और कोई शगल ही नहीं। खाना पीना, ओढ़ना-बिछौना, सब शराब! और अगर छोड़ दी तो एक कतरा भी हराम। अगर डाक्‍टर नुस्‍खे में भी तजवीजें तो भी न पिएँ। इन दो सूरतों से किसी हाल में भी खाली नहीं रहते थे। या तो उसके नाम से इस कदर नफरत कि जहर से बदतर समझते थे, या इस कदर इसके गुलाम कि बे-पिए जरा चैन नहीं।