मेरा यह व्यंग्य आज की नौकरशाही-व्यवस्था पर करारा तंज़ है. इसमें मैंने यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे यह व्यवस्था एक छोटे और ईमानदार अफसर को बड़ा अफसर बनाते ही बे-ईमान बना देती है. यह व्यंग्य यह भी दिखाता है कि कैसे ऐसे अफसर अपनी उस अफसरी को बचाने के लिए, नाना प्रकार के तनाव को झेलने के लिए मजबूर रहते हैं.