फिर उठ, निरंतर चल चला चल-२

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इस कविता में जीवन में मिलने वाली सफलताओ और असफलताओ की बात करते हुए वैदिक पुरानो के पात्रो की मिसाल देते हुए ये बताने की कोशिस की गयी है की बिना हार - जीत के सोचे एवं बाधाओं से न घबराकर, सिर्फ ध्यान लक्ष्य पर लगाते हुए अपने स्वधर्म से कर्मपथ पे अग्रसर रहना चाहिए , हताशा को पाट कर भी जोश और प्रेरित भाव से सर्जित की गयी है ये कविता पूरी पढ़े और समझे इसमें निहित भाव को .........