यात्रा, मदारी, सँपेरे और साँप

  • 7.4k
  • 1.4k

अभिजात्य वर्ग के कुछ लोगों में पसरे अस्पृश्यता के छद्म को निहायत खिलंदड़े अंदाज में उतारकर सामने रखती कहानी। इस कहानी का नायक शर्मा स्वयं सवर्ण होने के बावजूद ट्रेन की सीट पर फैलकर बैठे तिलकधारी पंडित-जैसे दिखने वाले व्यक्ति के प्रति लेशमात्र भी सहानुभूति नहीं रखता है और अपने साथ यात्रा कर रही दलित युवती को एकदम अनोखे अंदाज में बैठने के लिए सीट दिलाता है, वह रोमांचित भी करता है और प्रफुल्लित भी।