पराभव मधुदीप भाग - उन्नीस श्रद्धा बाबू रात को घर नहीं आया था | वह पहला अवसर था, जव वह गाँव में सारी रात घर से बाहर रहा था | रात को उसके घर आने में देर तो प्रायः हो ही जाया करती थी लेकिन किसी न किसी समय वह घर पहुँच अवश्य जाता था | रात ग्यारह बजे तक मनोरमा पति के लौटने की प्रतीक्षा करती रही | सुबह से ही उसने खाना नहीं खाया था | दोपहर का बना खाना पड़ा-पड़ा बासी हो रहा था | शाम को तो वह चूल्हा जलाने के लिए उठ भी नहीं पाई