मानवता के झरोखे

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प्रस्तुत कहानी मानवता के झरोखे नामक कहानी संग्रह का द्वितीय भाग है। प्रस्तुत कहानी में मनुष्य के भटकते मन को कथानक का आधार बनाया गया है । उसका अधिकार-मोह किस तरह से उसकी मुक्ति में बाधक बनता है, यही प्रस्तुत कहानी में कलात्मक एवं रोचक ढंग से शब्दबद्ध किया गया है । कथात्मक शैली यह में बताने का प्रयास किया गया है कि मोक्ष का संबंध मात्र आयु विशेष अथवा कर्मकांड से नहीं है, बल्कि मन को सांसारिक अधिकार-मोह से मुक्त करने पर ही मोक्ष संभव है।