दोहरा दर्द

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( हम अक्सर ही लोग जीवन में बहुत से कष्टों का सामना करते हैं । कभी कभी तो लगता है जिंदगी ही व्यर्थ है । हर व्यक्ति अपने जीवन के कुछ पहलुओं में फिल्मों के नायक की तरह होता है । हमें स्कूल के दिनों में पढ़ाया जाता था किसी का अपमान नही करना चाहिए किसी को दुःख नही पहुंचना चाहिए , झूठ नही बोलना चाहिए और चोरी करना , किसी को धोखा देना पाप है । अच्छे कर्म करने चाहिए इससे एक अच्छे समाज का निर्माण होगा । माता पिता भगवान का रूप होते हैं , उनकी सेवा से बढ़कर कोई पूजा नही , उनके आशीर्वाद से बड़ा कोई प्रसाद नही । कुछ बच्चे हैं जो अपने गुरु की बातों को अपने जीवन का मूल समझ लेते हैं । लेकिन असल जिंदगी में कुछ और ही चल रहा होता है । कदम कदम पर झूठ , धोखा , चोरी , घमण्ड , और अपमान है । मैं भी स्कूल में सिखाई गई बातों को ही आधार मानता था । इसलिए जीवन की सच्चाई से अनजान धोखा खाता गया । यह पुस्तक मेरे जीवन की एक अनमोल कृति है क्योंकि इस पुस्तक के माध्यम से आज मैं उस दर्द की व्याख्या करने जा रहा हूँ जिसे वर्षों से मैंने सहा है । कई बार यह दर्द मैंने उन्हें बताना चाहा जिन्हें समझता था कि शायद मेरी मदद कर सकें लेकिन सत्य को समझना तब कठिन हो जाता है जब असत्य धनी हो । धन का अभाव सत्य को कमजोर कर देता है । यही कारण रहा कि मेरा दर्द समझने के लिए कोई अपना नही मिला । कोई नही मिला जो मेरे दर्द के कारण को समझ सके । मेरे पिता जी कहते थे बेटा भगवान पर भरोसा रखो । वे तो भगवान पर बहुत भरोसा रखते थे पर क्या हुआ उनको भी तो यह वेदना सहनी पड़ी , महज मेरे लिए । आखिरकार इस दर्द से हारकर पिता जी ने तो आंखें बंद कर लीं और न जाने किस जहान में गए । मैं तो उन्हें बहुत प्रेम करता था फिर क्यों अन्त समय ओ मुझसे कुछ नही कह पाए , किसका डर था …..)