पराभव मधुदीप भाग - एक "मैं तो अब कुछ ही क्षणों का महेमान हूँ श्रद्धा की माँ!" कहते हुए सुन्दरपाल की आवाज लड़खड़ा गई| "ऐसी बात मुँह से नहीं निकालते श्रद्धा के बापू |" माया कुर्सी से उठकर अपने पति के समीप चारपाई पर ही आ बैठी | उसे अपने पति के बचने की आशा कम ही थी, तो भी वह आनेवाले भयंकर पल की कल्पना से स्वयं को बचाने का प्रयास कर रही थी | सुन्दरपाल पिछ्ले तीन महीनों से चारपाई पर पड़े थे और अब तो डाक्टरों ने भी उनके बचने की आशा छोड़ ही दी थी |