चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 39

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कार्नेलियाने पूछा, एलिस! यहाँ आने पर जैसे मन उदास हो गया है, इस संध्या के द्रश्यने मेरी तन्मयता में एक स्मृति की सूचना दी है सरल संध्या, पक्षियों के नाद से शान्ति को बुलाने लगी है देखते देखते एक एक करके दो चार नक्षत्र उदय होने गे जैसे प्रकृति अपनी सृष्टि की रक्षा, हीरों की किल से जड़ी हुई काली ढाल ले कर रही है और पवन किसी मधुर कथा का भार ले कर मचलता हुआ जा रहा है कहाँ जाएगा एलिस” एलिस ने उत्तर देते हुए कहा की वो अपने प्रिय के पास जाएगा इस पर कार्नेलिया ने कहा की उसको तो बस प्रेम ही प्रेम सूझता है....