चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 37

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कार्नेलिया ने कहा की बहुत दिन हुए देखा था वही भारतवर्ष! वही निर्मल ज्योति का देश, पवित्र भूमि, अब हत्या और लूट से बिभत्य बनायी जायेगी – ग्रीक सैनिक इस शस्यश्यामला पृथ्वी को रक्त रंजित बनावेंगे! पिता अपने साम्राज्य से संतुष्ट नहीं, आशा उन्हें दौड़ा वेगी पिशाची छलना में पद कर लाखों प्राणियों का नाश होगा, और सुना है यह युद्ध होगा चन्द्रगुप्त से सुन कर सखी बोली, सम्राट तो आज स्क्न्धावर जाने वाले हैं तभी राक्षस का प्रवेश होता है और वो कहता है की आयुष्मती मैं आ गया कार्नेलिया ने राक्षस से पूछा की क्या तुम्हारे देश में ब्राह्मण जाति बड़ी तपस्वी और त्यागी होती है?