सामाजिक कहानियां कहानियाँ पढ़े और PDF में डाउनलोड करे

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • गवाक्ष - 30

    गवाक्ष 30== बिना किसी टीमटाम के कुछ मित्रों एवं स्वरा के माता-पिता की उप...

  • पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 25 - अंतिम भाग

    पूर्ण-विराम से पहले....!!! 25. प्रखर और शिखा को एक दूसरे के लिए जो भी करना अच्छा...

  • सुरतिया - 2

    अचानक गुड्डू को याद आया कि उसके स्कूल में भी तो लोककला पेंटिंग होने वाली है, वो...

गीदड़-गश्त By Deepak sharma

गीदड़-गश्त किस ने बताया था मुझे गीदड़, सियार, लोमड़ी और भेड़िये एक ही जाति के जीव जरूर हैं मगर उनमें गीदड़ की विशेषता यह है कि वह पुराने शहरों के जर्जर, परित्यक्त खंडहरों में विचरते रहत...

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जिंदगी मेरे घर आना - 10 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १० इतना मूड खराब हो गया, अपनी स्टडी टेबल पर आ यूँ ही, एक किताब खोल ली। तभी शरद ने पीछे से आँखों पर हाथ रख दिया (जाने कैसी बच्चों सी आदत है, सुमित्रा काकी भ...

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इक समंदर मेरे अंदर - 12 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (12) वह ज़रा पारंपरिक कॉलेज था, पर वह अपने पसंद के स्कर्ट फेंक तो नहीं सकती थी। उसने वे स्कर्ट पहनना जारी रखा और फिगर ठीक होने से उस पर सूट भी खूब करत...

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गवाक्ष - 30 By Pranava Bharti

गवाक्ष 30== बिना किसी टीमटाम के कुछ मित्रों एवं स्वरा के माता-पिता की उपस्थिति में विवाह की औपचारिकता कर दी गई । स्वरा के माता-पिता कलकत्ता से विशेष रूप से बेटी व दामाद को...

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 25 - अंतिम भाग By Pragati Gupta

पूर्ण-विराम से पहले....!!! 25. प्रखर और शिखा को एक दूसरे के लिए जो भी करना अच्छा लगता वही करने की कोशिश करते| शिखा अभी घर से बाहर बहुत कम निकलती थी| दोनों फोन पर ही आपस में छोटी-बड़...

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सुरतिया - 2 By vandana A dubey

अचानक गुड्डू को याद आया कि उसके स्कूल में भी तो लोककला पेंटिंग होने वाली है, वो भी नेशनल लेबल की!! यदि बाउजी कोलाज़ जानते हैं, तो और भी बहुत कुछ जानते होंगे. गुड्डू तुरन्त वापस लौटा...

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दी लॉक डाउन टेल्स :कुछ खट्टी कुछ मीठी - 1 - सौतन से छुटकारा By RISHABH PANDEY

दी लॉक डाउन टेल्स इसके अंतर्गत देश व्यापी लॉक डाउन के समय की कुछ कहानियों का संग्रह है।। आज की पहली कहानी सौतन से छुटकारा आपके सामने है.....एक सरकारी विभाग में कार्यरत राजेश विभाग...

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गूंगा गाँव - 12 By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

बारह गूंगा गाँव 12 अकाल का स्थिति में जितनी चिन्ता गरीब आदमी को अपने पेट पालने की रहती है उतनी ही तृष्णा घनपतियों को अपनी तिजोरी भरने की बढ़ जाती...

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उजाला ही उजाला By Pavitra Agarwal

उजाला ही उजाला पवित्रा अग्रवाल जैसे ही मैं अस्पताल के पास पहुंचा मि. सरीन मुझे अस्पताल के मुख्य द्वार पर ही मिल गए. उनके चहरे पर संतोष के भाव उभर आये थे. वह बोले –‘बेटा डाक्टर ने ज...

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आखा तीज का ब्याह - 10 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (10) श्वेता का अंदाज़ा गलत नहीं था तिलक सच में बहुत परेशान था| उसने अवसादग्रस्त होकर खुदको पूरी तरह शराब में डूबा दिया था| कोई काम नहीं होता था उसके पास बस पूरा दिन...

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दास्तानगो - 2 By Priyamvad

दास्तानगो प्रियंवद २ राजाओं, नवाबों, सामंतों के ब्राह्मण मुंशी या दीवान उनकी जागीरों की आमदनी और खर्च का हिसाब किताब भी रखते थे। वे इन जागीरों की देखभाल या तो ठीक से कर नहीं पाते थ...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 17 By Jayanti Ranganathan

30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 17by Era Tak इरा टाक मन ना भये दस-बीस बेला के मन में पद्मा को लेकर एक अजीब सी वितृष्णा है। पद्मा को अपने प्रेमी की पत्नी के रू...

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राम रचि राखा - 6 - 5 By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (5) पंद्रह दिनों बाद जब मुन्नर जेल से छूटे तो उनकी हालत किसी मानसिक रोगी जैसी थी। मन में अनिश्चितता ने घर कर लिया था। कुछ भी निर्णय कर पाने की शक्ति खो चुके थे। कहाँ ज...

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बात बस इतनी सी थी - 12 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 12. माता जी और मंजरी को लेकर सोचते-सोचते मेरी नजर एक बार फिर खाने की प्लेट से जा टकराई । मैंने मंजरी से कहा - "यह खाना कब तक यूँ ही रखा रहेगा, खा क्यों नहीं लेती...

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वापसी. By Ranjana Prakash

वापसी अभी सूरज देवता प्रकट भी नहीं हुए थे के पूरा घर ॐकार के दिव्य स्वर से निनादित होने लगा था इस घर की भोर ऐसी ही सुरीली होती है बाहर पंछियों का मधुर कलरव और घर में गंभीर मधुर ओजस...

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उलझन - 2 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे दो शाम को मम्मी-पापा अनुज अंकल से मिलने उनके घर गये। सौमित्र किताब खोलकर बालकनी में बैठ गया लेकिन उसका पढ़ने में मन नहीं लग रहा था। अचानक बिजली चली गयी और इनवर्ट...

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गूगल बॉय - 6 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रसोई में नाश्ता बना रही थी। गोपाल व गूगल भी नाश्ता करने के लिये वहीं आ गये। ‘बेटे गूगल, तू कहे तो आज म...

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एनीमल फॉर्म - 8 By Suraj Prakash

एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (8) कुछ दिन बीतने के बाद, प्राणदण्डों से उपजा आतंक धुंधला पड़ चुका था। कुछेक पशुओं को याद था, या उन्होंने सोचा कि उन्हें याद था कि छठे...

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जय हिन्द की सेना - 12 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म ग्यारह नीले आकाश के नीचे अपने हवेलीनुमा घर की सबसे ऊँची छत पर श्वेत साड़ी में दरी के ऊपर बैठी शृंगार रहित होने पर भी गौर वर्ण उमा साक्षात्‌ परी लग रह...

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अंग्रेजियत पर हिंदी दिवस का कटाक्ष By AKANKSHA SRIVASTAVA

हिंदी को वनवास दे दिया,अंग्रेजी को राज हम हिंदुस्तानियों ने सत्तर साल में कैसा गढ़ दिया समाज , बदल गया हिंदी का इतिहास,फिर हावी हो गया अंग्रेजियत का एक बार राज। आज हिंदी दिवस पर हिं...

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अरक्षित By Deepak sharma

अरक्षित उनका घर इन-बिन वैसा ही रहा जैसा मैंने कल्पना में उकेर रखा था| स्थायी, स्वागत-मुद्रा के साथ घनी, विपुल वनस्पति; ऊँची, लाल दीवारों व पर्देदार खुली खिड़कियाँ लिए वह बँगला पूरी...

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नश्तर खामोशियों के - 4 By Shailendra Sharma

नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 4. किसी स्कूटर के स्टार्ट होने के स्वर से जैसे में नींद से जगी. मरे हुए लम्हों को बार-बार अपने भीतर जिंदा करते हुए,मैं प्रिंसिपल ऑफिस पहुच गई थी....

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आवरण By Raja Singh

आवरण राजा सिंह विशेष सोच रहा हैं। आने का सम्भावित समय निकल गया हैं।.........अब तो सात भी बज चुके हैं। शंका-कुशंका डेरा डालने लगी थीं।.........अणिमा अब तक निश्चय ही आ जाती हैं । फिर...

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यारबाज़ - 16 - अंतिम भाग By Vikram Singh

यारबाज़ विक्रम सिंह (16) घर के अंदर प्रवेश करते ही जैसे ही मैं अपने जूते के तसमें खोलने लगा कि मां ने रसोई से ही मुझे कहना शुरू किया," अरे फिर तुम चले गए थे इंटरव्यू देने। पापा ने...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 6 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (6) काॅलेज से लौटते समय मेरी और चन्द्रकान्ता की इच्छा पुनः कुछ दूर पैदल चलने की हो रही थी। मार्ग में चलते हुए हम दोनों सायं की खुशनुमा ऋतु का आनन्द व चर्चा करत...

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वटवृक्ष By Rama Sharma Manavi

आज मानसी को अवसादग्रस्त हुए एक वर्ष से अधिक हो गए।अभी कुछ माह पूर्व तक जब भी वह अपने पति से अपनी मानसिक,शरीरिक तकलीफों के बारे में बात करना चाहती थी तो उसके पति वरूण के पास...

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क्या नाम दूँ ..! - 1 By Ajay Shree

क्या नाम दूँ ..! अजयश्री प्रथम अध्याय “आखिर तुमने मुझे समझ क्या रखा है ! आज पाँच साल तक साथ रहने के बाद तुम कह रहे हो कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ ..इन पाँच सालों में शायद ही कोई...

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लाल फूल का एक जोड़ा By Uma Jhunjhunwala

लाल फूल का एक जोड़ा उमा झुनझुनवाला सीमा सिंह मामूली लड़की नहीं थी| उसके व्यक्तित्व में एक ख़ास आकर्षण था| बातचीत का सलीका ऐसा कि सुनने वाला उसके असर से बंध जाए जबकि आवाज़ में कोई एक रे...

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अनिर्णय By Pavitra Agarwal

अनिर्णय पवित्रा अग्रवाल "आरती अभी से सोने चल दी ? ...कुछ देर गप्पें ही लगाते ।' "नीलम क्यों परेशान करती है, उसे सोने दे। आज तो उसने सपनों की महफिल में डा.रवीन्द्र सिंह को आने क...

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 2 By Nidhi agrawal

सड़क पार की खिड़कियाँ डॉ. निधि अग्रवाल (2) लंचब्रेक में मैंने आज एकांत नहीं तलाशा… सबके साथ ही लंच किया। बॉस वहाँ से गुज़रा पर मेरी हँसी नहीं छीन पाया। मैं सुरुचि का हाथ पकड़े रही। शा...

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आपकी आराधना - 3 By Pushpendra Kumar Patel

अतीत के कुछ अनसुलझे रहस्य जो बदल देंगे आराधना की जिन्दगी.....

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पुनर्मिलन By Sudha Adesh

पुनर्मिलन'देवेशजी, आप तो पढ़े लिखे इंसान हैं...इतनी निर्दयता से तो कोई जानवर को भी नहीं मारता...बच्चे प्यार से समझते हैं न कि मार से प्यार रूपी नकेल से शैतान से शैतान बच्चे को ठ...

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गीदड़-गश्त By Deepak sharma

गीदड़-गश्त किस ने बताया था मुझे गीदड़, सियार, लोमड़ी और भेड़िये एक ही जाति के जीव जरूर हैं मगर उनमें गीदड़ की विशेषता यह है कि वह पुराने शहरों के जर्जर, परित्यक्त खंडहरों में विचरते रहत...

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जिंदगी मेरे घर आना - 10 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १० इतना मूड खराब हो गया, अपनी स्टडी टेबल पर आ यूँ ही, एक किताब खोल ली। तभी शरद ने पीछे से आँखों पर हाथ रख दिया (जाने कैसी बच्चों सी आदत है, सुमित्रा काकी भ...

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इक समंदर मेरे अंदर - 12 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (12) वह ज़रा पारंपरिक कॉलेज था, पर वह अपने पसंद के स्कर्ट फेंक तो नहीं सकती थी। उसने वे स्कर्ट पहनना जारी रखा और फिगर ठीक होने से उस पर सूट भी खूब करत...

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गवाक्ष - 30 By Pranava Bharti

गवाक्ष 30== बिना किसी टीमटाम के कुछ मित्रों एवं स्वरा के माता-पिता की उपस्थिति में विवाह की औपचारिकता कर दी गई । स्वरा के माता-पिता कलकत्ता से विशेष रूप से बेटी व दामाद को...

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 25 - अंतिम भाग By Pragati Gupta

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सुरतिया - 2 By vandana A dubey

अचानक गुड्डू को याद आया कि उसके स्कूल में भी तो लोककला पेंटिंग होने वाली है, वो भी नेशनल लेबल की!! यदि बाउजी कोलाज़ जानते हैं, तो और भी बहुत कुछ जानते होंगे. गुड्डू तुरन्त वापस लौटा...

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गूंगा गाँव - 12 By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

बारह गूंगा गाँव 12 अकाल का स्थिति में जितनी चिन्ता गरीब आदमी को अपने पेट पालने की रहती है उतनी ही तृष्णा घनपतियों को अपनी तिजोरी भरने की बढ़ जाती...

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उजाला ही उजाला By Pavitra Agarwal

उजाला ही उजाला पवित्रा अग्रवाल जैसे ही मैं अस्पताल के पास पहुंचा मि. सरीन मुझे अस्पताल के मुख्य द्वार पर ही मिल गए. उनके चहरे पर संतोष के भाव उभर आये थे. वह बोले –‘बेटा डाक्टर ने ज...

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आखा तीज का ब्याह - 10 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (10) श्वेता का अंदाज़ा गलत नहीं था तिलक सच में बहुत परेशान था| उसने अवसादग्रस्त होकर खुदको पूरी तरह शराब में डूबा दिया था| कोई काम नहीं होता था उसके पास बस पूरा दिन...

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दास्तानगो - 2 By Priyamvad

दास्तानगो प्रियंवद २ राजाओं, नवाबों, सामंतों के ब्राह्मण मुंशी या दीवान उनकी जागीरों की आमदनी और खर्च का हिसाब किताब भी रखते थे। वे इन जागीरों की देखभाल या तो ठीक से कर नहीं पाते थ...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 17 By Jayanti Ranganathan

30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 17by Era Tak इरा टाक मन ना भये दस-बीस बेला के मन में पद्मा को लेकर एक अजीब सी वितृष्णा है। पद्मा को अपने प्रेमी की पत्नी के रू...

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राम रचि राखा - 6 - 5 By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (5) पंद्रह दिनों बाद जब मुन्नर जेल से छूटे तो उनकी हालत किसी मानसिक रोगी जैसी थी। मन में अनिश्चितता ने घर कर लिया था। कुछ भी निर्णय कर पाने की शक्ति खो चुके थे। कहाँ ज...

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बात बस इतनी सी थी - 12 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 12. माता जी और मंजरी को लेकर सोचते-सोचते मेरी नजर एक बार फिर खाने की प्लेट से जा टकराई । मैंने मंजरी से कहा - "यह खाना कब तक यूँ ही रखा रहेगा, खा क्यों नहीं लेती...

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वापसी. By Ranjana Prakash

वापसी अभी सूरज देवता प्रकट भी नहीं हुए थे के पूरा घर ॐकार के दिव्य स्वर से निनादित होने लगा था इस घर की भोर ऐसी ही सुरीली होती है बाहर पंछियों का मधुर कलरव और घर में गंभीर मधुर ओजस...

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उलझन - 2 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे दो शाम को मम्मी-पापा अनुज अंकल से मिलने उनके घर गये। सौमित्र किताब खोलकर बालकनी में बैठ गया लेकिन उसका पढ़ने में मन नहीं लग रहा था। अचानक बिजली चली गयी और इनवर्ट...

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गूगल बॉय - 6 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रसोई में नाश्ता बना रही थी। गोपाल व गूगल भी नाश्ता करने के लिये वहीं आ गये। ‘बेटे गूगल, तू कहे तो आज म...

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एनीमल फॉर्म - 8 By Suraj Prakash

एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (8) कुछ दिन बीतने के बाद, प्राणदण्डों से उपजा आतंक धुंधला पड़ चुका था। कुछेक पशुओं को याद था, या उन्होंने सोचा कि उन्हें याद था कि छठे...

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जय हिन्द की सेना - 12 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म ग्यारह नीले आकाश के नीचे अपने हवेलीनुमा घर की सबसे ऊँची छत पर श्वेत साड़ी में दरी के ऊपर बैठी शृंगार रहित होने पर भी गौर वर्ण उमा साक्षात्‌ परी लग रह...

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अंग्रेजियत पर हिंदी दिवस का कटाक्ष By AKANKSHA SRIVASTAVA

हिंदी को वनवास दे दिया,अंग्रेजी को राज हम हिंदुस्तानियों ने सत्तर साल में कैसा गढ़ दिया समाज , बदल गया हिंदी का इतिहास,फिर हावी हो गया अंग्रेजियत का एक बार राज। आज हिंदी दिवस पर हिं...

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अरक्षित By Deepak sharma

अरक्षित उनका घर इन-बिन वैसा ही रहा जैसा मैंने कल्पना में उकेर रखा था| स्थायी, स्वागत-मुद्रा के साथ घनी, विपुल वनस्पति; ऊँची, लाल दीवारों व पर्देदार खुली खिड़कियाँ लिए वह बँगला पूरी...

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नश्तर खामोशियों के - 4 By Shailendra Sharma

नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 4. किसी स्कूटर के स्टार्ट होने के स्वर से जैसे में नींद से जगी. मरे हुए लम्हों को बार-बार अपने भीतर जिंदा करते हुए,मैं प्रिंसिपल ऑफिस पहुच गई थी....

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आवरण By Raja Singh

आवरण राजा सिंह विशेष सोच रहा हैं। आने का सम्भावित समय निकल गया हैं।.........अब तो सात भी बज चुके हैं। शंका-कुशंका डेरा डालने लगी थीं।.........अणिमा अब तक निश्चय ही आ जाती हैं । फिर...

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यारबाज़ - 16 - अंतिम भाग By Vikram Singh

यारबाज़ विक्रम सिंह (16) घर के अंदर प्रवेश करते ही जैसे ही मैं अपने जूते के तसमें खोलने लगा कि मां ने रसोई से ही मुझे कहना शुरू किया," अरे फिर तुम चले गए थे इंटरव्यू देने। पापा ने...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 6 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (6) काॅलेज से लौटते समय मेरी और चन्द्रकान्ता की इच्छा पुनः कुछ दूर पैदल चलने की हो रही थी। मार्ग में चलते हुए हम दोनों सायं की खुशनुमा ऋतु का आनन्द व चर्चा करत...

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वटवृक्ष By Rama Sharma Manavi

आज मानसी को अवसादग्रस्त हुए एक वर्ष से अधिक हो गए।अभी कुछ माह पूर्व तक जब भी वह अपने पति से अपनी मानसिक,शरीरिक तकलीफों के बारे में बात करना चाहती थी तो उसके पति वरूण के पास...

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क्या नाम दूँ ..! - 1 By Ajay Shree

क्या नाम दूँ ..! अजयश्री प्रथम अध्याय “आखिर तुमने मुझे समझ क्या रखा है ! आज पाँच साल तक साथ रहने के बाद तुम कह रहे हो कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ ..इन पाँच सालों में शायद ही कोई...

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लाल फूल का एक जोड़ा By Uma Jhunjhunwala

लाल फूल का एक जोड़ा उमा झुनझुनवाला सीमा सिंह मामूली लड़की नहीं थी| उसके व्यक्तित्व में एक ख़ास आकर्षण था| बातचीत का सलीका ऐसा कि सुनने वाला उसके असर से बंध जाए जबकि आवाज़ में कोई एक रे...

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अनिर्णय By Pavitra Agarwal

अनिर्णय पवित्रा अग्रवाल "आरती अभी से सोने चल दी ? ...कुछ देर गप्पें ही लगाते ।' "नीलम क्यों परेशान करती है, उसे सोने दे। आज तो उसने सपनों की महफिल में डा.रवीन्द्र सिंह को आने क...

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 2 By Nidhi agrawal

सड़क पार की खिड़कियाँ डॉ. निधि अग्रवाल (2) लंचब्रेक में मैंने आज एकांत नहीं तलाशा… सबके साथ ही लंच किया। बॉस वहाँ से गुज़रा पर मेरी हँसी नहीं छीन पाया। मैं सुरुचि का हाथ पकड़े रही। शा...

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आपकी आराधना - 3 By Pushpendra Kumar Patel

अतीत के कुछ अनसुलझे रहस्य जो बदल देंगे आराधना की जिन्दगी.....

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पुनर्मिलन By Sudha Adesh

पुनर्मिलन'देवेशजी, आप तो पढ़े लिखे इंसान हैं...इतनी निर्दयता से तो कोई जानवर को भी नहीं मारता...बच्चे प्यार से समझते हैं न कि मार से प्यार रूपी नकेल से शैतान से शैतान बच्चे को ठ...

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