सामाजिक कहानियां कहानियाँ पढ़े और PDF में डाउनलोड करे

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • पटना से चिट्ठी आई

    हर कहानी की किस्मत में एक अदद शुरुआत और मुकम्मल अंत नहीं होता। कुछ वृत में तरह घ...

  • लहराता चाँद - 2

    लहराता चाँद लता तेजेश्वर 'रेणुका' 2 शादी के 2 साल के बाद डॉ.संजय ने खुद...

  • इक समंदर मेरे अंदर - 14

    इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (14) उस समय कामना को मैनापॉज का अर्थ पता ही नहीं थ...

लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 2 By Jitendra Shivhare

लीव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा जितेन्द्र शिवहरे (2) धरम अपने घरवालों से फोन पर बात कर रहा था। यह देखकर टीना ने भी पिता विश्वनाथ को अपनी खैरियत की जानकारी दे दी। धरम अखबार पढने में...

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पटना से चिट्ठी आई By Dr Shilpi Jha

हर कहानी की किस्मत में एक अदद शुरुआत और मुकम्मल अंत नहीं होता। कुछ वृत में तरह घूमते रहने को अभिशप्त भी होती हैं। छोटे शहर के अनाम मुहल्ले में जब हम बड़े हो रहे होते हैं तो अक्सर ए...

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उलझन - 5 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे पाँच एक दिन पापा घर पर ही थे। आज सुबह से ही उनकी तबियत कुछ खराब थी। इसी कारण बादल भी रहमान के साथ नहीं गया था। कई दिनों से तो वह स्कूल भी नहीं जा रहा था। पापा क...

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लहराता चाँद - 2 By Lata Tejeswar renuka

लहराता चाँद लता तेजेश्वर 'रेणुका' 2 शादी के 2 साल के बाद डॉ.संजय ने खुद का एक क्लिनिक खोला। हड्डियों और नशों के बड़े से बड़े ऑपरेशन बहुत ही सजगता और आसानी से कर देते। लोग उसक...

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गूगल बॉय - 9 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 9 अपनी दिनचर्या पूरी करने के बाद गूगल एक बार बाँके बिहारी के मन्दिर में गया और गिन्नियों की थैली को सँभाल आया। थैली को सुर...

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जिंदगी मेरे घर आना - 12 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १२ उदास चेहरा लिए वह घर भर में घूमती रहती है... पर किसी को कोई गुमान ही नहीं। सब समझते हैं एग्जाम की टेंशन है. सिक्के का दूसरा पहलू देखने का कष्ट किसी को ग...

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इक समंदर मेरे अंदर - 14 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (14) उस समय कामना को मैनापॉज का अर्थ पता ही नहीं था। उसे यह भी नहीं पता था कि एक उम्र के बाद रक्‍त़स्‍त्राव रुकता भी है और उससे पहले इस तरह खून बहता ह...

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जय हिन्द की सेना - 14 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म चौदह बीस जनवरी, उन्नीस सौ बहत्तर की प्रातः आठ बजे पाँच सदस्यीय दल मध्यप्रदेश की पुरानी रियासत सूरजगढ़ पहुँचा। इस दल में एक मात्र मोना महिला सदस्य थी।...

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गवाक्ष - 32 By Pranava Bharti

गवाक्ष 32== अक्षरा शनै:शनै: सामान्य होने का प्रयत्न कर रही थी किन्तु आसान कहाँ होता है इस प्रकार की दुर्घटना के पश्चात सामान्य होना। वह दर्शन की छात्रा थी इसीलिए इतनी गंभीर...

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बात बस इतनी सी थी - 14 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 14. सुबह उठकर मैंने अपनी दिनचर्या का पालन वैसे ही किया, जैसे पिछले एक सप्ताह से करता आ रहा था । मैं सुबह जल्दी उठा, नहा-धोकर मंजरी के साथ पूजा-अनुष्ठान संपन्न किय...

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गूंगा गाँव - 14 समाप्त By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

चौदह गूंगा गाँव 14 जनजीवन से जुड़ी कथायें ही भारत की सच्ची तस्वीर है।’ यह बात हमारे मन-मस्तिष्क में उठती रही है। किन्तु इस प्रश्न को हल करने से पहले म...

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प्रतिदान By Raja Singh

प्रतिदान राजा सिंह साहेब का ट्रान्सफर हो गया था, उनके चेहरे से प्रसन्नता निकल-निकल रही थी। शारीरिक भाषा बया कर रही थी कि वह कितने प्रसन्न है। वह अपने घर गाजियाबाद जा रहे थे, अपने ब...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 8 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (8) मैं समझ चुकी थी कि विक्रान्त मुझसे निकटता बढ़ाने के लिए ही ऐसा करता है। अपनी पत्नी को तलाक दे चुका है, संपन्न घर का है, स्वंय भी अच्छी नौकरी में है। अतः उस...

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छठी By Deepak sharma

छठी गाड़ी अभी बालामऊ में ही थी जब माँ ने सीट के नीचे से सारा सामान निकालकर हमें सब समझा दिया- दोनों थैले सुमन के जिम्मे रहेंगे और खाने की टोकरी के साथ पानी का डिब्बा सुरेश के| लोहे...

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आखा तीज का ब्याह - 12 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (12) वासंती के तलाक के बाद से ही उसके परिवार का कोई भी सदस्य उससे बात ही नहीं कर रहा था| यहाँ तक की उसने जब अपनी माँ को फ़ोन लगाया तो उन्होंने भी बिना बात किये ही फ़...

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दास्तानगो - 4 By Priyamvad

दास्तानगो प्रियंवद ४ दरवाजे पर तेज दस्तक हुयी। यह लड़की की दस्तक से अलग थी। इसमें संकोच और विनम्रता नहीं थी। यह कई हाथों की धमक से भरी थी। द्घोड़ों की हिनहिनाहट, खुरों के पटकने की, ल...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 19 By Jayanti Ranganathan

30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 19 by Sumita Chakrobarty सुमिता चक्रवर्ती कुछ तेरी-कुछ उसकी कहानी फिर दादी… दादी के अलावा जिंदगी के सूत्र और किसी ने दिए ही नह...

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राम रचि राखा - 6 - 7 By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (7) लगभग एक सप्ताह गुजर चुका था उन्हें इस गाँव में आये। एक दिन संकठा सिंह पड़ोस के गाँव से किसी पंचायत का फैसला करके अपनी साईकिल पर लौट रहे थे। दोपहर के बारह बज रहे होग...

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मुक्ति-धाम By Nisha chandra

मुक्ति-धाम कहते हैं, एक बार मुक्ति ने भगवान से प्रार्थना करते हुए प्रश्न किया कि ‘ हे गोपाल! हे कृष्ण ! मैं सबको मुक्ति दिलाती हूँ, लेकिन मेरी मुक्ति का कोई उपाय बताओ । भगवान ने कह...

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क्या नाम दूँ ..! - 2 By Ajay Shree

गातांक से आगे.... क्या नाम दूँ ..! अजयश्री द्वितीय अध्याय सूरज आज भी अपने समय और जगह पर था, बस दिन बदल गया| पण्डित जटाशंकर मिश्र की टन-टन घंटी की अवाज के साथ बाबू टोला चिरगोड़ा में...

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छल By Pavitra Agarwal

छल पवित्रा अग्रवाल "दीदी मेरी एक सहेली मुसीबत में है। असल में वह एक धोखे का शिकार हो गई है। आपसे कुछ सलाह-मशवरा करना चाहती है। आपसे बिना पूछे ही मैंने उसे यहाँ आने को कह दिया है। म...

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 3 By Nidhi agrawal

सड़क पार की खिड़कियाँ डॉ. निधि अग्रवाल (3) स्वर मासूम है। मैं अपने द्वंद से स्वयं ही आहत। सपने भी हमें रुला सकते हैं। आभासी दुनिया यथार्थ से अधिक करीबी हो सकती है। हर ज़हीन व्यक्ति का...

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एनीमल फॉर्म - 10 - अंतिम भाग By Suraj Prakash

एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (10) वर्ष़ों बीत गए। मौसम आए और गए। अल्पजीवी पशु अपनी जीवन-लीला समाप्त कर गए। एक ऐसा भी वक्त आया जब क्लोवर, बैंजामिन, काले कव्वे मोसेस...

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आपकी आराधना - 4 By Pushpendra Kumar Patel

अतीत के कुछ अनसुलझे रहस्य जो बदल देंगे आराधना की जिन्दगी...

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चार लोग और उनकी कहीं बातें। By JYOTI MEENA

हम रोज़ की तरह अपनी बालकनी में बैठे काॅफी का लुफ्त उठा रहे थे, तभी हमारे कानों में साइड वाली बालकनी हो रही लडा़ई की आवाजे़ पडी़ और फिर क्या था। हम भी बाकियों से कुछ कम तो ना थे, हम...

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गौरव By rajendra shrivastava

कहानी-- गौरव...

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फैसला By Sudha Adesh

फैसला शीशे जैसे नाजुक दिल पर व्यंग्य बाणों के पत्थर बरसेंगेे तो किरचें उडेंगी ही । किरचें जख्मों को जन्म न दें, ऐसा संभव ही नहीं है। समय अंतराल के पश्चात् जख्म नासूर में प...

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BOYS school WASHROOM - 4 By Akash Saxena "Ansh"

घंटी की आवाज़ के साथ ही पेओन अंदर जाता है-'जी सर जी '.... प्रिंसिपल (गुस्से मे) एक पर्ची पेओन के हाथ मे थमा देता है-"जाओ इन सभी बच्चों को अभी की अभी मेरे रूम मे भेजो... लेकि...

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हसरतें By Dr Shilpi Jha

हसरतें पूरे घर में कोलाहल था. घर की नई आमद को चारों ओर से घेरे सारा परिवार इकठ्ठा था. शीशम की फिनिश और वेलवेट के गद्दों वाले आठ कुर्सियों के डायनिंग टेबल ने इतने बड़े हॉल को भी सिक...

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कम्युनिस्ट By Raja Singh

कम्युनिस्ट राजा सिंह प्रवेश जब इस कस्बे में आया था, उसे अच्छा नहीं लगा था. वह महानगरीय जिंदगी जीने का अभ्यस्त, यह जिंदगी ठहरी ठहरी सी एकांत बोझिल और उकताई लगी. कुछ नया, रोचक और अच्...

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बरसते मेंह में.... By Dr Vinita Rahurikar

बरसते मेंह में.... "क्या तकलीफ है?" चेहरे से नोज मास्क हटाते हुए उसने पूछा। "जी पीछे की दाढ़ में चार दिन से तेज दर्द हो रहा है।" वह बोला। "बैठ जाइए।" उसने लेटर हेड निकाल लिया और ना...

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नश्तर खामोशियों के - 5 - अंतिम भाग By Shailendra Sharma

नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 5. उस साल एम.एस. सर्जरी के इम्तिहान दो महीने देरी से हुए थे. अना जुटा हुआ था.उसका कॉलेज में दिखना लगभग बंद हो गया था. घर पर भी बहुत कम आता था. जब...

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लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 2 By Jitendra Shivhare

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उलझन - 5 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे पाँच एक दिन पापा घर पर ही थे। आज सुबह से ही उनकी तबियत कुछ खराब थी। इसी कारण बादल भी रहमान के साथ नहीं गया था। कई दिनों से तो वह स्कूल भी नहीं जा रहा था। पापा क...

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लहराता चाँद - 2 By Lata Tejeswar renuka

लहराता चाँद लता तेजेश्वर 'रेणुका' 2 शादी के 2 साल के बाद डॉ.संजय ने खुद का एक क्लिनिक खोला। हड्डियों और नशों के बड़े से बड़े ऑपरेशन बहुत ही सजगता और आसानी से कर देते। लोग उसक...

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जिंदगी मेरे घर आना - 12 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – १२ उदास चेहरा लिए वह घर भर में घूमती रहती है... पर किसी को कोई गुमान ही नहीं। सब समझते हैं एग्जाम की टेंशन है. सिक्के का दूसरा पहलू देखने का कष्ट किसी को ग...

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गवाक्ष - 32 By Pranava Bharti

गवाक्ष 32== अक्षरा शनै:शनै: सामान्य होने का प्रयत्न कर रही थी किन्तु आसान कहाँ होता है इस प्रकार की दुर्घटना के पश्चात सामान्य होना। वह दर्शन की छात्रा थी इसीलिए इतनी गंभीर...

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गूंगा गाँव - 14 समाप्त By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

चौदह गूंगा गाँव 14 जनजीवन से जुड़ी कथायें ही भारत की सच्ची तस्वीर है।’ यह बात हमारे मन-मस्तिष्क में उठती रही है। किन्तु इस प्रश्न को हल करने से पहले म...

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मुक्ति-धाम By Nisha chandra

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गौरव By rajendra shrivastava

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हसरतें By Dr Shilpi Jha

हसरतें पूरे घर में कोलाहल था. घर की नई आमद को चारों ओर से घेरे सारा परिवार इकठ्ठा था. शीशम की फिनिश और वेलवेट के गद्दों वाले आठ कुर्सियों के डायनिंग टेबल ने इतने बड़े हॉल को भी सिक...

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कम्युनिस्ट By Raja Singh

कम्युनिस्ट राजा सिंह प्रवेश जब इस कस्बे में आया था, उसे अच्छा नहीं लगा था. वह महानगरीय जिंदगी जीने का अभ्यस्त, यह जिंदगी ठहरी ठहरी सी एकांत बोझिल और उकताई लगी. कुछ नया, रोचक और अच्...

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नश्तर खामोशियों के - 5 - अंतिम भाग By Shailendra Sharma

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